वो रात ही ऐसी थी ,
वो बात ही ऐसी थी
अश्क उसकी आँख में भी थे ,
अश्क मेरी आँख में भी थे ,
समुंदर सा सैलाब था हमारी आँखों में ,
निकलने को बेताब ,
रोक रखा था किसी तरह हमने अपनी पलकों के बांधो से,
फिर भी वो बेताब था उन्हें तोड़कर बह जाने को ,
न चाहते हुए भी हम अश्को को बहने देना चाहते थे ,
अकेले में सारे बांध खुद तोड़ देना चाहते थे ,
रात भेर बैठे रहे आँखों में आँखे डालकर ,
हम बिन कहे ही सब कुछ कह गए ,
बना के आँखों को अपने लफ्जो का सहारा
सीधे उन के दिल में सब कुछ कह गए ....
हम रात भर बैठे रहे ....
कभी कुछ तो कभी कुछ सोचते रहे
सुबह को हम जिस मोड़ पे मिले थे कभी
उसी मोड पे हंसते हंसते अलविदा कह गए .....
अश्क उसकी आँख में भी थे ,
अश्क मेरी आँख में भी थे ,
Monday, October 26, 2009
Saturday, October 24, 2009
वो मेरी समझ
वो साहिल, साहिल न था जिन्हें हम साहिल समझे ,
वो भवर से भी ज्यादा गहरा था ,
वो कली, कली न थी जिन्हें हम कली समझे ,
वो कांटे से भी कटीली थी ,
वो कश्ती कश्ती न थी जिन्हें हम कश्ती समझे ,
वो कश्ती कागज की कश्ती से भी नाजुक निकली ,
वो सफ़र,सफ़र न था जिस पे हम हमसफ़र खोजने निकले ,
वो सफ़र मेरा अंतिम सफ़र निकला ,
ऐसे ही लोग आते रहे !!!!!!!!! मिलते रहे !!!!!! और जाते रहे !!!!
ऐसे ही हर बार मुझे समझाते रहे ,
मै समझता रहा उन्हें कुछ और
वो कुछ और ही समझाते रहे ,,,,,,,,,,
वो भवर से भी ज्यादा गहरा था ,
वो कली, कली न थी जिन्हें हम कली समझे ,
वो कांटे से भी कटीली थी ,
वो कश्ती कश्ती न थी जिन्हें हम कश्ती समझे ,
वो कश्ती कागज की कश्ती से भी नाजुक निकली ,
वो सफ़र,सफ़र न था जिस पे हम हमसफ़र खोजने निकले ,
वो सफ़र मेरा अंतिम सफ़र निकला ,
ऐसे ही लोग आते रहे !!!!!!!!! मिलते रहे !!!!!! और जाते रहे !!!!
ऐसे ही हर बार मुझे समझाते रहे ,
मै समझता रहा उन्हें कुछ और
वो कुछ और ही समझाते रहे ,,,,,,,,,,
Wednesday, October 21, 2009
मन की चंचलता
वो चंचल हवाये,
वो काली घटाए,
वो नीला आसमान,
वो सतरंगी जहाँ ,
हर्साता है मेरे मन को ,
जब कभी खो जाता है मेरा मन ,
वो वापस बुलाता है मुझको ,
वो महकी बगिया ,
वो महका चमन ,
वो खिली कलिया,
वो खिला बदन ,
जब भी निराश होता हूँ ,
समझाते है मुझको ,
की खोकर अपना सबकुछ हम देते है खुशिया जहा को
बिना कुछ लिए ,
तब फिर तू इतना निराश है क्यू
जब की तू पा चूका है सब कुछ ,
अपनी चंचलता में जियो ,
न हो उदास , न होने दो किसी को ,
मेरे मन की चंचलता !!!!!!!!!!!
वो काली घटाए,
वो नीला आसमान,
वो सतरंगी जहाँ ,
हर्साता है मेरे मन को ,
जब कभी खो जाता है मेरा मन ,
वो वापस बुलाता है मुझको ,
वो महकी बगिया ,
वो महका चमन ,
वो खिली कलिया,
वो खिला बदन ,
जब भी निराश होता हूँ ,
समझाते है मुझको ,
की खोकर अपना सबकुछ हम देते है खुशिया जहा को
बिना कुछ लिए ,
तब फिर तू इतना निराश है क्यू
जब की तू पा चूका है सब कुछ ,
अपनी चंचलता में जियो ,
न हो उदास , न होने दो किसी को ,
मेरे मन की चंचलता !!!!!!!!!!!
Friday, October 16, 2009
"मेरी माँ "
मै हँसा तो हँसी मेरे साथ ,
मै रोया तो रोई मेरे साथ ,
मै जगा तो जगी मेरे साथ ,
मै सोया तो सोई मेरे साथ ,
खुद की कोई परवाह न की ..
हर कदम हर घडी मेरे साथ
"मेरी माँ"
मै कैसे भूल जाऊ वो पल ...
जब मेरी हँसी की खातिर वो रो भी न पाई
रोना भी चाहा तो उसे बस मेरी याद आयी,
वो जानती थी उनको रोता देखकर ...
शायद मै भी रो पडूंगा .....
ये सोचकर वो आंसुओ को भी छुपा गई ...
"मेरी माँ "
रात भर जाग- जाग कर मुझे सुलाती मेरी माँ ...
खुद को सुखा कर मुझे खिलाती मेरी माँ ...
कभी न सोचा अपने तन का
हरदम मुझे कुछ नया पहनाती मेरी माँ ....
दो साड़ी में गुजार दी उम्र सारी....
मुझे पहनाती रही हर बार नया ....
"मेरी माँ "
मै रोया तो रोई मेरे साथ ,
मै जगा तो जगी मेरे साथ ,
मै सोया तो सोई मेरे साथ ,
खुद की कोई परवाह न की ..
हर कदम हर घडी मेरे साथ
"मेरी माँ"
मै कैसे भूल जाऊ वो पल ...
जब मेरी हँसी की खातिर वो रो भी न पाई
रोना भी चाहा तो उसे बस मेरी याद आयी,
वो जानती थी उनको रोता देखकर ...
शायद मै भी रो पडूंगा .....
ये सोचकर वो आंसुओ को भी छुपा गई ...
"मेरी माँ "
रात भर जाग- जाग कर मुझे सुलाती मेरी माँ ...
खुद को सुखा कर मुझे खिलाती मेरी माँ ...
कभी न सोचा अपने तन का
हरदम मुझे कुछ नया पहनाती मेरी माँ ....
दो साड़ी में गुजार दी उम्र सारी....
मुझे पहनाती रही हर बार नया ....
"मेरी माँ "
Wednesday, October 14, 2009
वो लम्हे
अगर कुछ देना ही है तुझे ,
तो दे दे मुझे मेरी वो हँसी,
जो बचपन में थी ....
जब हर बात पे हँसता था मै ....
कुछ देना ही है तुझे
तो दे दे मुझे मेरे वो बचपन के साथी ..
जो हर वक्त साथ थे मेरे ...
वो खुशी हो या गम.....
मेरे साथ ही हस्ते थे ..
मेरे साथ ही रोते थे....
कुछ देना ही है तुझे ,
तो दे दे मुझे मेरे वो मिट्टी के खिलोने ,
जिनमे जान न थी ..
पर उनमे मेरी जान थी ..
उनके टूटने पे होता था दर्द मुझे ..
करता था उनकी पट्टी ..
अपने हाथो से ....
और फिर अपने दोस्तों को बताना की ,
आज मेरी गुडिया की एक टांग टूट गयी ..
और उनकी हमदर्दी अच्छी लगती ....
अगर कुछ देना है तो मुझे ......
कर दो मेरा बचपन मुझे नसीब..
ओ मेरे "रकीब"
तो दे दे मुझे मेरी वो हँसी,
जो बचपन में थी ....
जब हर बात पे हँसता था मै ....
कुछ देना ही है तुझे
तो दे दे मुझे मेरे वो बचपन के साथी ..
जो हर वक्त साथ थे मेरे ...
वो खुशी हो या गम.....
मेरे साथ ही हस्ते थे ..
मेरे साथ ही रोते थे....
कुछ देना ही है तुझे ,
तो दे दे मुझे मेरे वो मिट्टी के खिलोने ,
जिनमे जान न थी ..
पर उनमे मेरी जान थी ..
उनके टूटने पे होता था दर्द मुझे ..
करता था उनकी पट्टी ..
अपने हाथो से ....
और फिर अपने दोस्तों को बताना की ,
आज मेरी गुडिया की एक टांग टूट गयी ..
और उनकी हमदर्दी अच्छी लगती ....
अगर कुछ देना है तो मुझे ......
कर दो मेरा बचपन मुझे नसीब..
ओ मेरे "रकीब"
एक तलाश
बिलकुल जीवन सी ....
कभी शांत
अँधेरी रात के जैसे .....
कभी ऐसी मची हलचल ....
की सब बिखेर गया ..
मेरे जीवन के जैसे ..
चाह कर भी कुछ कर नहीं पाता अपने मन का ..
सब होता है उसी के मन का .....
क्या करू .....???????
कोई तो बताओ .......
इस अनजान रहो में कोई तो आओ .....
साथ न चलना चाहो मेरे कोई बात नहीं ....
खुशी तुम्हारी !!!!!
एक झलक रोशनी की तो दिखा जाओ .........
और न चाहिए कुछ भी .....
इक बार राह तो दिखा जाओ...........
Saturday, October 10, 2009
आज भी समझ नहीं पाया अपने आप को
आज निकला हूँ अपने आप से बाहर,
साथ अपने अपना ही साया बनकर
देखने क्या हूँ मै और क्या समझता हूँ मै
दो कदम ही चला था की
कुछ आवाज आई बड़ी ही दीन सी,
तन पे कपडे कम चिथड़े ज्यादा ,
साथ में एक नवजात शिशु ,
सही मायनो में उसे जरूरत थी कुछ हमदर्दी की ,
और कुछ चंद कागज के टुकडों की ,..............
अपनी जेब में हाथ डाला फिर बाहर निकाला
बिना हाथ में कुछ लिए ही ,
उसे इशारो ही इशारो में बताया आज कुछ नहीं ,
कल निकलूंगा इधर से तो........
मै अवाक् सा रह गया ..........!!!!!!!!!!!
मायूस था अपने आप से .......
क्या हूँ मै और क्या समझता हूँ मै अपने आप को ,
अभी चार कदम ही चला था की
दिखाई दिया मयखाना .......
अनायास ही उस तरफ कदम बढे जा रहे थे
पर पास में शायद कुछ न था ......
यह विचार आया मुझे की अभी तो ..........
फिर क्यों जा रहा है उधर....
और अगर था तो उसे क्यों नहीं दिया जिसे शायद जरूरत थी...........
अंदर जाते ही अपनी चोर जेब में हाथ डाला एक सौ रुपये का नोट निकला ,
बढाया हाथ और अंदर से एक गिलास निकाला
समय बीता और और वो 'जाम ए दौर' ख़त्म हुआ .....
कुछ खनक अभी भी थी उन हाथो में चाँद सिक्को की ....
उन्हें जेब में रख कर निकल आया वो मैखाने से .......
तेजी से जा रहा है अपने ठिकाने को .....
फिर उसी राह में उसी जगह पे कुछ भीड़ थी .......
लोग खड़े थे, दे रहे थे उलाहना उस माँ को
जो कुछ देर पहले पैसे मांग रही थी ...
अब लोग उसे पैसे तो नहीं पर बिन मांगे ही राय दे रहे थे ......
कि क्यों इसका इलाज नहीं कराया...
पैसे नहीं थे तो मांग नहीं सकती थी .....
लोग तो अपने दिल के टुकड़े के लिए क्या क्या करते है ....
तुम भीख नहीं मांग सकती थी.....
अब जाओ अपने आप ही इसके लिए कफ़न का इन्तजाम करो ...
और दफनाओ अपने आप ही......
मै देख रहा था और सोच रहा था कि शायद ...
अब कुछ मदद करेगा उस असहाय माँ कि .....
जो इस समय पत्थर बन चुकी थी .....
आंसू चेहरे से नहीं आत्मा से निकल रहे हो शायद ..
क्योकि वो रो ही इतना कम रही थी...........
पर तभी कदम बढा दिए उसने अपने घर कि और .....
घर जाकर कदम बढाये अपने बिस्तर कि ओर..
ओर सो गया चिर निंद्रा में .....
मै तो केवल देखता ओर सोचता रह गया.......
कि क्या हूँ मै और क्या समझता हूँ मै
अपने आप को ..............
साथ अपने अपना ही साया बनकर
देखने क्या हूँ मै और क्या समझता हूँ मै
दो कदम ही चला था की
कुछ आवाज आई बड़ी ही दीन सी,
तन पे कपडे कम चिथड़े ज्यादा ,
साथ में एक नवजात शिशु ,
सही मायनो में उसे जरूरत थी कुछ हमदर्दी की ,
और कुछ चंद कागज के टुकडों की ,..............
अपनी जेब में हाथ डाला फिर बाहर निकाला
बिना हाथ में कुछ लिए ही ,
उसे इशारो ही इशारो में बताया आज कुछ नहीं ,
कल निकलूंगा इधर से तो........
मै अवाक् सा रह गया ..........!!!!!!!!!!!
मायूस था अपने आप से .......
क्या हूँ मै और क्या समझता हूँ मै अपने आप को ,
अभी चार कदम ही चला था की
दिखाई दिया मयखाना .......
अनायास ही उस तरफ कदम बढे जा रहे थे
पर पास में शायद कुछ न था ......
यह विचार आया मुझे की अभी तो ..........
फिर क्यों जा रहा है उधर....
और अगर था तो उसे क्यों नहीं दिया जिसे शायद जरूरत थी...........
अंदर जाते ही अपनी चोर जेब में हाथ डाला एक सौ रुपये का नोट निकला ,
बढाया हाथ और अंदर से एक गिलास निकाला
समय बीता और और वो 'जाम ए दौर' ख़त्म हुआ .....
कुछ खनक अभी भी थी उन हाथो में चाँद सिक्को की ....
उन्हें जेब में रख कर निकल आया वो मैखाने से .......
तेजी से जा रहा है अपने ठिकाने को .....
फिर उसी राह में उसी जगह पे कुछ भीड़ थी .......
लोग खड़े थे, दे रहे थे उलाहना उस माँ को
जो कुछ देर पहले पैसे मांग रही थी ...
अब लोग उसे पैसे तो नहीं पर बिन मांगे ही राय दे रहे थे ......
कि क्यों इसका इलाज नहीं कराया...
पैसे नहीं थे तो मांग नहीं सकती थी .....
लोग तो अपने दिल के टुकड़े के लिए क्या क्या करते है ....
तुम भीख नहीं मांग सकती थी.....
अब जाओ अपने आप ही इसके लिए कफ़न का इन्तजाम करो ...
और दफनाओ अपने आप ही......
मै देख रहा था और सोच रहा था कि शायद ...
अब कुछ मदद करेगा उस असहाय माँ कि .....
जो इस समय पत्थर बन चुकी थी .....
आंसू चेहरे से नहीं आत्मा से निकल रहे हो शायद ..
क्योकि वो रो ही इतना कम रही थी...........
पर तभी कदम बढा दिए उसने अपने घर कि और .....
घर जाकर कदम बढाये अपने बिस्तर कि ओर..
ओर सो गया चिर निंद्रा में .....
मै तो केवल देखता ओर सोचता रह गया.......
कि क्या हूँ मै और क्या समझता हूँ मै
अपने आप को ..............
Friday, October 9, 2009
झूठी मुस्कराहट
मुस्कुराये जा, तू मुस्कुराये जा
तेरी मुस्कराहट उसका सुकून है
उसे तेरी मुस्कराहट का इन्तजार है ,
तू खुस है तो वो भी है खुस ,
जो तू उदास है तो वो तुझसे पहले है ,
अब ये फैसला तुझे करना है ,
अपना गम करना है सामने उसके.
या उसे यु ही पीना है ,
मुस्कुराये जा, तू मुस्कुराये जा
तेरी मुस्कराहट उसका सुकून है
ऐसा नहीं है वो तेरे साथ नहीं है
तेरे गम का उसे अहसास नहीं है
वो हर पल साथ है तेरे बस तुझे अहसास नहीं है
जो तुझे गम हुआ तो वो रोयेगा तुझसे पहले ,
तेरी हर खुशी में भी है वो सबसे पहले
वो साथ है तेरे हर पल ,
तू खुस हो या हो तुझे गम ,
फिर भी तू मुस्कुरा क्योकि उसे इन्तेजार है तेरी खुशी का ,
मुस्कुराये जा, तू मुस्कुराये जा
तेरी मुस्कराहट उसका सुकून है
तेरी मुस्कराहट उसका सुकून है
उसे तेरी मुस्कराहट का इन्तजार है ,
तू खुस है तो वो भी है खुस ,
जो तू उदास है तो वो तुझसे पहले है ,
अब ये फैसला तुझे करना है ,
अपना गम करना है सामने उसके.
या उसे यु ही पीना है ,
मुस्कुराये जा, तू मुस्कुराये जा
तेरी मुस्कराहट उसका सुकून है
ऐसा नहीं है वो तेरे साथ नहीं है
तेरे गम का उसे अहसास नहीं है
वो हर पल साथ है तेरे बस तुझे अहसास नहीं है
जो तुझे गम हुआ तो वो रोयेगा तुझसे पहले ,
तेरी हर खुशी में भी है वो सबसे पहले
वो साथ है तेरे हर पल ,
तू खुस हो या हो तुझे गम ,
फिर भी तू मुस्कुरा क्योकि उसे इन्तेजार है तेरी खुशी का ,
मुस्कुराये जा, तू मुस्कुराये जा
तेरी मुस्कराहट उसका सुकून है
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