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Wednesday, October 21, 2009

मन की चंचलता

वो चंचल हवाये,
वो काली घटाए,
वो नीला आसमान,
वो सतरंगी जहाँ ,
हर्साता है मेरे मन को ,

जब कभी खो जाता है मेरा मन ,
वो वापस बुलाता  है मुझको ,

वो महकी बगिया ,
वो महका चमन ,
वो खिली कलिया,
वो खिला बदन ,

जब भी निराश होता हूँ ,
समझाते है मुझको ,

की खोकर अपना सबकुछ हम देते है खुशिया जहा को
बिना कुछ लिए ,
तब फिर तू  इतना  निराश है क्यू
जब की तू पा चूका है सब कुछ ,
अपनी चंचलता में जियो ,
न हो उदास , न होने दो किसी को , 
मेरे मन की चंचलता !!!!!!!!!!!