वो नादाँ था नादानिया करता रहा
मै परेशान था वो मुझे और परेशान करता रहा
मेरे घाव भरते भी न थे
और वो घाव पे घाव करता रहा ……
उसकी हर नादानी मुझे प्यारी थी
वो मुझे मेरी जान से प्यारी थी
मै हर बार आँख मूँद लेता उसकी नादानियों से
की वो आज नहीं तो कल समेत लेगा अपनी बाहो में ……
न मालूम था की वो एक छलावा है
उसके दिल में मेरे सिवा कोई और घर कर आया है ,
जिसे मैंने कभी अपने हांथो से सवारा था ……
जिसे मैंने कभी अपने हांथो से सवारा था ……
मेरे घर की उन दिवारों में दरार सी कर आया है ........
वो नादाँ था नादानिया करता रहा
वो मुझसे तन्हाइयो में हसने की बात करता रहा
हम महफ़िल में भी न हँसा करते थे
और वो तन्हाइयो में हसने की बात करता रहा ……
वो नादाँ था नादानिया करता रहा
मै परेशान था वो मुझे और परेशान करता रहा ......