मोम का जिस्म लेकर,
आग से खेला किया,
मुमकिन थी जीत मेरी,
पर हर पल हारा किया,
ये मालूम था इस खेल में,
हार होनी है मेरी ,
पर न था ये मालूम,
की जिसे जीता रहा हर पल ,
उसी ने मेरी "हार का सौदा " किया,
फिर भी अफ़सोस न होता हार का,
जो हार मेरी उसके आगोश" में होती,
पर वो बेरहम यहाँ भी ,
बस दूर से खेला किया ,
और मै "मोम का जिस्म " लेकर,
आग से खेला किया !
Friday, April 30, 2010
Friday, April 23, 2010
"वफ़ा ए खुशबू"
"वफ़ा ए खुशबू"
मेरी नजरो से नजरे चुराने लगे है
शायद "मुझे छोडकर" वो जाने लगे है
अब "वफ़ा ए खुशबू" भी नहीं आती उनसे
शायद वो अब झूठा लिबास ओढ़ के आने लगे है
तेरा चेहरा हमे आइना दिखता है
मेरी हर खुशी का रंग इसी पे खिलता है
कुछ दिनों से जिंदगी में या तो कोई खुशी नहीं आयी
या खुशी का रंग अब पीला दिखता है
तू गम न कर
इस गम के फ़साने में
तुझे आवाज न दूंगा
खुशिया अगर दोबारा लौटी
तुझे दौड़ के बुला लूँगा .....
शायद "मुझे छोडकर" वो जाने लगे है
अब "वफ़ा ए खुशबू" भी नहीं आती उनसे
शायद वो अब झूठा लिबास ओढ़ के आने लगे है
तेरा चेहरा हमे आइना दिखता है
मेरी हर खुशी का रंग इसी पे खिलता है
कुछ दिनों से जिंदगी में या तो कोई खुशी नहीं आयी
या खुशी का रंग अब पीला दिखता है
तू गम न कर
इस गम के फ़साने में
तुझे आवाज न दूंगा
खुशिया अगर दोबारा लौटी
तुझे दौड़ के बुला लूँगा .....
"साथ चलने का वादा"
"साथ चलने का वादा"
दो चार दिन की कहानी ही सही
वो साथ चलने का वादा निभा न सके
राहे जुदा थी, तो क्या हुआ
साथ अपने वो यादे , ले के जा न सके
दूर होकर भी उन्होंने कुछ ऐसा उलझाया
चाह के भी हमे कोई सुलझा न सके
सागर के पहलु में जा के भी हम
गहराई सागर की कभी पा न सके
लड़ते रहे सारी उम्र जिनसे
उन्हें हम अपना दुश्मन कभी बना न सके
राज की बात करते रहे सारी उम्र जिनसे
उन्हें राजदां कभी कह न सके
अपनी तो बस यही रवानी रही
पास आकर भी हम सभी के, किसी के पास आ न सके ..
वो साथ चलने का वादा निभा न सके
राहे जुदा थी, तो क्या हुआ
साथ अपने वो यादे , ले के जा न सके
दूर होकर भी उन्होंने कुछ ऐसा उलझाया
चाह के भी हमे कोई सुलझा न सके
सागर के पहलु में जा के भी हम
गहराई सागर की कभी पा न सके
लड़ते रहे सारी उम्र जिनसे
उन्हें हम अपना दुश्मन कभी बना न सके
राज की बात करते रहे सारी उम्र जिनसे
उन्हें राजदां कभी कह न सके
अपनी तो बस यही रवानी रही
पास आकर भी हम सभी के, किसी के पास आ न सके ..
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