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Thursday, September 23, 2010
"खेवैया"
खुश नसीब है हम
जो हमकों वो ,
"साहिल" पे छोड़ गए
ले जाते बीच भवर में
बन के मेरे "खेवैया"
तो हम कहाँ जाते,
हम तो पथिक है,
कच्ची गलियों के,
बीच भवर में कैसे टिक पाते,
ये अहसान है उनका,
जो साहिल पे छोड़ गए "
Saturday, September 4, 2010
''मेरी मंजिल''
''मेरी मंजिल''
''करता रहा
इबादत,
सारी उम्र उसकी,
कभी 'वो'
मेरे
पास न आया,
खत्म हूआं,
जो
सफ़र मेरा,
वो बन के
मंजिल मेरी,
मुझको 'खाक' में
मिलाने आया''
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