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Thursday, May 20, 2010

"खामोश निगाहे"

मेरी खामोश निगाहे,
अब भी तेरा  पता ढूंढें,
तू  कही भी हो
ये तेरा ही  निशाँ ढूंढें ,

मै कैसे कह दू 
ये भूल गयी   है तुझे ,
ये  अब भी उस  गली में
पलके  बंद कर के अपनी, तेरा ही  मकां ढूंढे,

शाम होते ही
पैमाने भी देखकर ,
मुझको अपने आगोश में
निकल पड़ते है  तेरा पता ढूंढे ,

रात होती है जो
गमो के साथ ए 'अक्स',
तो खुद सवेरा
आने का बहाना ढूंढे ,

वक्त गुजारे है
तेरे दामन में जो हमने ,
मेरी आँखे उन्ही सुरमयी
नजारों का निशाँ ढूंढे ,


सुर्ख लाली सी छायी है आज भी आँखों में
ये तेरी बिंदिया  की लाली को आज भी ढूंढे I