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Sunday, June 27, 2010

"प्यार की तहजीब "

उम्मीद की थी प्यार की तहजीब ने


शायद यही भूल थी मेरी,


जो आज गिरते हुए अश्को में

अपनी हसरत ढूनता हूँ ,

कुछ पल को ठहर जाता जो वक्त

तो अपनी वही सूरत ढूनता हूँ ,


गुजरे थे जिन गलियों से कभी हम

उन में प्यार के बादल ढूनता हूँ


शायद बरस जाये वो ही मुझपे

यही सोच कर रोज उस गली से गुजरता हूँ


मुझे इन्तेजार है उस दिन का

की शायद लौट आये वो तुम्हारी याददास्त

मेरी वो उम्मीद ,

मै पागल हूँ न

आज भी दरवाजे की तरफ देखता हूँ