न अब यहाँ रुकने का मन
न किसी को रोकने का,
न किसी के आने का सबब
न अब किसी के जाने का,
बस
सारी रात,
तन्हा, बरस जाने का मन
घुप्प अंधेरो में,
अपनी ही परछाई से,
सिसकते हुए लिपट जाने का मन
NA AB YAHA RUKNE KA MAN
NA KISI KO ROKNE KA
NA KISI KE ANE KA SBAB
NA KISI KE JANE KA SBAB,
BAS,
SARI RAT,
TANHA, BARAS JANE KA MAN
GHUPP ANDHERO ME,
APNI HI PERCHAYI SE,
SISAKTE HUE LIPAT JANE KA MAN