मेरी मंजिल!!
न ये जिंदगी है ....
न ये आसमां........,
हर सुबह दौड़ता हूँ
फिर भी मंजिल की तलाश में !!!!!!!!
कोई पुकारे मुझको,
मेरे अतीत से
तो कोई सामने से
मुझको आवाज दे ,
गंतव्य है मेरा कहाँ , नहीं जानता
बस दौड़ता जाता हूँ , बेकस ,बेबस , बेसबब
मंजिल की तलाश में !!!!!!!!
मै बन गया हु,
इक रेल का डिब्बा,
है कौन सा स्टेशन , मेरा अंतिम पड़ाव
नहीं जानता,
रुकता हूँ कुछ घडी , कुछ पल
फिर अगले ही पल
आती है इक आवाज ssssssss
बदल देती है जो मेरी पहचान के मायने
मै फिर दौड़ने लगता हूँ
मंजिलो की तलाश में !!!!!!!
यहाँ है सबके अपने अपने उसूल
सबके अपने अपने दायरे
कुछ घडी तो,
साथ चले हमसफ़र बनके
फिर अगले ही स्टेशन पर
उतर पड़े अजनबी बनके,
मै फिर दौड़ने लगता हूँ
मंजिल की तलाश में !!!!!!!
अमरेन्द्र शुक्ल 'अमर'