१-
नहीं आसरा,
मंजिल का अब,
न किसी पड़ाव की जरुरत है मुझे
जो भी रुका, मंजिल बना
जो चला गया
वो कुछ पल का रहबर बना
२-
न मेरी कोई डगर है
न मेरा कोई नगर है यहाँ
जिस राह भी तुम ले चलो
वो ही डगर अपनी
जिस नगर में तुम रुको
वो ही नगर अपना है यहाँ
३-
न यहाँ की बस्ती मेरी
न यहाँ के लोग मेरे
जिसने जहाँ भी रखा मुझे
उसी का घर मेरा घर बना
"ऐ समाज के पुरोधा
अब तुम ही बताओ,
मै क्या हूँ ????"
अमर*****
नगर वधु- तवायफ़