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Monday, February 18, 2013

"बेइंतेहा मोहब्बत"




अभी कल ही तो खरीदी है हमने 
दो-चार पल की खुशियाँ 
कुछ  हसी
कुछ गम
और साथ में----------थोड़े से आँसू,!!

देखते है कितने दिन चलती है 
पर हा, 
अब मैं किसी से कुछ साझा नहीं करता 
तुम भी मुझसे कुछ सांझा करने को मत कहना 
अब मैं इस मामले में थोडा स्वार्थी हो गया हूँ !!

इस महंगाई के ज़माने में 
अब क्या क्या साझा करू 
वैसे भी कुछ बचा के नहीं रखा 
तुमसे -------
और जो रखा है उसमे अब----तुम तो नहीं ही हो !!

न जाने आगे समय रहे न रहे
न जाने आगे मैं इन्हें फिर से खरीद भी पाऊं या नहीं ,
या बस दूर से ही मन मसोस कर रहना पड़े 
इसलिए, 
मैं इन्हें जी भर के अकेले ही 
भोगना चाहता हूँ 
वैसे भी दूर से आती इनकी महक 
और खुद से ही टकराकर लौटती इनकी प्रतिध्वनि
मुझे पागल सा कर देती है !!

हा कभी तुम भी चाहो 
-----------कुछ ऐसा ही 
तो बस किसी से बेइंतेहा मोहब्बत कर लेना !!

अमर =====